आज से लगभग चालिस पचास साल पहले तक लोग यह सब जानते थे कि आयुर्वेद का इलाज कितने दिन तक किया जाये, क्योंकि उस समय तक चिकित्सा के लिये केवल यही एक्मात्र चिकित्सा विग्यान था , जिसका लगभग सभी भारतीय परिवार उपयोग करते थे / होम्योपैथी अधिक उन्नत अवस्था में नहीं थी और इसे केवल बच्चों के इलाज तक ही सीमित था / यह इसलिये कि बच्चे एलोपैथी या आयुर्वेद की कड़वी दवा खाना पसन्द नहीं करते थे / मजबूरन बच्चों के इलाज के लिये होम्योपैथी की दवाओं का उपयोग करना पड़्ता था /
पुराने समय मे लोग आयुर्वेद के महत्व को समझते थे / इसलिये उनको जानकारी थी कि बीमारी के इलाज में कितना समय लगेगा , बड़े बूढे भी अपने अनुभव से बता देते थे और बता देते थे कि ” हर मर्ज के ठीक होने की एक मियाद होती है” या ” ये तो असाध्य या कष्ट साध्य या याप्य रोग है” या ” यह तो जिन्दगी भर चलने वाला रोग है और अब तो दवाओं के सहारे ही जीवन बिताना पड़ेगा” /
आज के जमाने में यह बताने वाला कोई है ही नहीं, न समझाने वाला कोई है, वजह साफ है , इन सब बातों के बारे मे ग्यान रखने वालों का एक दम अभाव / नतीजा अब यह है कि लोगो को पता ही नहीं कि जब वे बीमार हों तो उनको क्या करना चाहिये ?
मेरे यहां आने वाले मरीज मुझसे पूछते है कि वे कितने दिन आयुर्वेदिक दवा खायें , जिनसे उनकी बीमारी का ठीक ठीक इलाज हो सके / सवाल हर मरीज पूछता है और उसका सवाल पूछना भी जायज है /
आयुर्वेद का इस सम्बन्ध में क्या कहना है, उसे मै सार भाग में और अपने अनुभव को जोड़ कर आप सबके साथ अपने अनुभव को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं /

आयुर्वेद में ऐसा निर्देशित किया गया है कि किसी भी बीमारी का इलाज उसके पैदा होने, देश, काल और वातावरण तथा अन्य अनुकूल या प्रतिकूल परिस्तिथियों के ऊपर निर्भर करता है / इसलिये किसी भी बीमारी का इलाज कुछ घन्टे से लेकर एक दिन या कुछ दिन तक की मियाद मे हो सकता है और कुछ अन्य बीमारियां कुछ दिन से लेकर कई महीने या कई कई साल तक हो सकती है या फिर जीवन पर्यन्त तक /
मैने मानव शरीर में होने वाली बीमारियों का वर्गीकरण निम्न सात कैटेगरी में किया है / मेरे हिसाब से सारी दुनिया के लोग इन्ही सात कारणो से बीमार होते है / ये कारण है ;
१- भौतिक यानी Physical
२- मानसिक यानी Mental
३- इन्फेक्सियस यानी Infections
४- जेनेटिक यानी Genetics
५- ट्राउमैटिक यानी Traumatic
६- ईयट्रोगेनिक यानी Iatrogenic
७- अन्य कारण Others
उपरोक्त श्रेणी को देखने के बाद इस बात का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि बीमारियों का निदान किस श्रेणी के अन्तरगत आता है / फिर इसमें यह तलाश करनी होगी कि जो भी बीमारिया है वे [a] Acute है या [b] Semi acute है या [c] Chronic है या [d] Long lasting Disease condition है /
कितने समय तक आयुर्वेद का इलाज कराना चाहिये, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तकलीफ कैसी है /
१- अगर तकलीफ acute है तो यह कुछ घन्टे में ही दवाओं से response कर जाती है जैसे पेट का दर्द, सिर का दर्द, दान्त का दर्द, वमन होना, हिचकी आना, पेट में ऐठन होना आदि / लेकिन यहां इन सबमे एक फर्क है / अगर दर्द कैन्सर का है, अगर सिर दर्द स्पान्दिलाइटिस या माइग्रेन का है, अगर दान्त का दर्द सड़े हुये दान्त का है तो फिर मूल रोग की चिकित्सा ही करना एक मात्र उपाय है, / अब इसमे कितना समय लगेगा यह बताना बहुत मुश्किल होता है /
२- अन्य सभी बीमारियों मे आयुर्वेद का निर्देश है कि कम से कम ३० दिन तक दवा करना चाहिये / अगर ३० दिन में लाभ न मिले तो ४० दिन या ६० दिन या ९० दिन या १२० दिन या १८० दिन तक इलाज कराना चाहिये /
३- कुछ बीमारियों ऐसी होती हैं जिनमे समय सीमा सही सही निर्धारित नहीं की जा सकती / इसलिये इनमे देश , काल, परिस्तिथि के अनुसार दवाओं तथा परहेज का निर्धारण किया जाता है, जिसे वैद्य / आयुर्वेदिक चिकित्सक के बिना करना सम्भव नहीं होता है / इस श्रेणी में कष्ट साध्य, अति कष्ट साध्य रोग और असाध्य रोग आते है /
४- सुख साध्य रोग के लिये ऊपर बताई गयी [कालम सन्ख्या -२ ] समय सीमा ठीक और सही अन्कित की गयी है /
कुछ हद तक Homoeopathic चिकित्सा में भी यही समय सीमा तथा बतायी गयी परिस्तिथियां लागू होती है, ऐसा मैने अनुभव किया है /