फिल्म कलाकार देव आनन्द का मै हमेशा फैन रहा हूं / बचपन में जब मैने पहली फिल्म देखी थी , वह थी “नास्तिक” , जिसमें नालिनी जयवन्त हीरोइन थी / नलिनी जयवन्त का चेहरा और एक्टिन्ग मुझे पसन्द आयी / मै चोरी से फिल्म देखता था / कुछ हीरोइनें मुझे अच्छी लगती थी जैसे, नालिनी जयवन्त, श्यामा, निम्मी / हीरो उस समय मेरा कोई फेवरेट नहीं था / कारण यह था कि उस समय स्टन्ट फिल्में , जो मार धाड़ से भरपूर होती थी, उनके हीरो जैसे सोहराब मोदी, रन्जन, महिपाल, जयराज आदि अधिक जानदार लगते थे / एक बार एक स्टन्ट फिल्म देखने गया, तो टिकट नही मिली / इस कारण से एक दूसरे सिनेमाघर गया और यह वह फिल्म थी,जिसमें शीला रमानी हीरोइन थी और देव आनन्द हीरो / किशोरावस्था थी, इसलिये मार धाड़ वाली फिल्में मुझे और मेरे मित्रों को बहुत अच्छी लगती थी / जिस फिल्म में लड़ाई झगड़ा के सीन न हो, फाइटिन्ग न हो वह फिल्म देखना बेकार समझते थे / मै रोमान्टिक फिल्में कम देखता था, जिस मार धाड़ वाली फिल्म को देखने आये थे उसका टिकट नहीं मिला / घर वापस आना नहीं चाहते थे, लिहाजा साथ के मित्रों के आग्रह पर देवानन्द की फिल्म जिसमें शीला रमानी हीरोइन थी और हीरो देवानन्द थे, देखने के लिये राजी हो गया /
यह पहली रोमान्टिक फिल्म थी, जिसे मैने रुपहले पर्दे पर देखा / देव आनन्द मुझे आकर्षक हीरो लगे / फिर बाद में मैने उनकी फन्टूश फिल्म, जिसमें ऐ मेरी टॊपी पलट के आ, न अपने फन्टुश को सता और दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जैसे आकर्षक गाने थे, मुझे बहुत पसन्द आयी / देव आनन्द का खिलान्दड़ा अन्दाज और उनके शरीर के लटके झटके तथा एक्टिन्ग के अन्दाज को देखकर मै उनका मुरीद हो गया / फिर मैने उनकी लगभग सभी फिल्में देखीं /
मुझे सिने स्टारों मे केवल कुछ हीरो पसन्द आये / नम्बर एक पर तो देवानन्द ही है / इसका कारण यह रहा कि मुझे ऐसे लोग पसन्द हैं जो हमेशा गमगीन रहते हैं, हमेशा अपना दुखड़ा रोते रहते हैं, खुद तो हन्सते हसाते नहीं, जहां बैठते हैं , वहां का माहौल भी गमगीन बना देते है / मेरी आदत है कि मै उन लोगों के बीच बैठना कम पसन्द करता हूं , जो महौल में गमगीनी पैदा कर देते है / नम्बर दो पर मेरी पसन्द के हीरो हैं शम्मी कपूर और नम्बर तीन पर धर्मेन्द्र /
कुछ दशक पहले दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका में देव आनन्द ने कई लेखों की एक सिरीज लिखी थी, प्रकाशित हुयी थी / इसमे उन्होने अपने मन की बात कहते हुये लिखा था, [१] कि वे पीछे मुड़्कर नहीं देखते कि क्या हो चुका है [२] कि आगे जो भी करने का विचार होता है , कोशिश करता हूं कि वह पहले से ज्यादा अच्छा हो [३] कि जब मै एक काम खत्म कर लेता हूं तो मै चुप्चाप नहीं बैठता और दूसरे काम की शुरुआत के लिये सपने देखने लगता हूं /
जब लेख मे मैने देवानन्द का लिखा यह पाठ पढा तो इससे मै बहुत inspire हुआ और बहुत प्रभावित भी / आज भी यह बातें मुझे याद आती हैं / उनके लटके झटके, उनकी चाल, उनकी अपनी गरदन बायीं तरफ झुकाकर और बायें हाथ को झटके के साथ बाहर फेंकने का एक्शन, उनकी चाल और चलते समय दोनों हाथों का सामने की तरफ लय बध्ध होकर एक खास अन्दाज में और खास एकशन मे चलना, उनका आन्खों द्वारा विभिन्न भावों का दरशाना और इसके साथ उनकी खास आवाज में डायलागों की डिलीवरी हमे सालों साल तक उनकी याद दिलाती रहेगी / सभी जानते है कि इस भौतिक सन्सार को छोड़कर सबको एक न एक दिन जाना है / ८८ साल की उमर कम नहीं होती / देव आनन्द भले ही इस दुनियां में न हों, लेकिन उनकी फिल्मी कृतियां , उनकी फिल्में उन्हे हमेशा जिन्दा बनाये रखेन्गी / जो भी देखेगा, वह उन्के अल्हड़्पन, मस्त मौला अन्दाज, इश्क करने की फर्माइश और जिन्दा दिली को कभी भी नहीं भूल पायेगा, देवानन्द जैसा कलाकार अब कभी भी फिर नहीं पैदा होगा /
हमे शोक न मनाकर इस बेहतरीन और बेमिसाल कलाकर को देवानन्द के इसी अल्हड़ पन के अन्दाज में अन्तिम विदाई देना चाहिये /