आर्थरायटिस अथवा गठिया वात अथवा जोड़ो का दर्द और तकलीफ होना आदिकाल से चली आ रही बीमारी है / यह मानव जाति की अति प्राचीन बीमारी है / जोड़ो की तकलीफ मनुष्यों को तो होती ही है , स्तन्पायी जानवरों को भी ऐसी ही तकलीफ होती है /
आयुर्वेद मे आर्थराइटिस बीमारी का बहुत अच्छा विवरण दिया गया है , इसके कारणों का उल्लेख भी किया गया है , और इस तकलीफ से बचने के लिये क्या करना चाहिये , और ऐसा जीवन शैली मे क्या बदलाव करने चाहिये , खान पान मे क्या एहतियात बरतना चाहिये आदि बातों के बारे मे बहुत ही सार गर्भित स्वरूप मे बताया गया है /
इसके अलावा आयुर्वेद यह भी बताता है कि अगर arthritis अथवा arthritis जैसी बीमारी हो जाती है तो उसका उपचार करना चाहिये ताकि स्वास्थय और आरोग्य प्राप्त किया जा सके ? आयुर्वेद यह भी बताता है कि उपचार मे किस तरह की दवाओ का सेवन करना चाहिये और इलाज मे मदद और सहायता पहुचाने के लिये किस तरह की सहायक चिकित्सा यथा पन्च कर्म और मालिश और वाहरी उपयोगी उपचार की व्यवस्था किया जाये ताकि शीघ्र लाभ प्राप्त हो सके ?
सोरायसिस एक तो ऐसे ही बहुत जटिल किस्म की बीमारी है , ऊपर से अगर चर्म प्रदाह और अधिक मेलानाइन सन्ग्रह की तकलीफ हो जाये तो ऐसी स्तिथि मे यही कहा जायेगा कि पहले ही कोढ था, ऊपर से खाज खुजली और पैदा हो गयी साथ मे दर्द और जलन भी / यानी यह एक तरह की ऐसी complicate disease condition बन गयी जिसे severe किस्म की तकलीफ ही कहा जायेगा /
मैने बहुत से PSORISIS के भयन्कर और जटिल से जटिल रोगियो का इलाज किया है , यह रोगी उनमे से एक हो सकता है / मुझे एक बात और समझ मे आयी है कि जब इस रोगी का microscopic examination किया गया तो इसकी अन्दरूनी बनावट का अन्दाजा एक अन्य चर्म रोग ICHTHYOSIS से मिलता जुलता नज़र आया है , हलाकि इस तरह के बीमारियो के mixture को नकारा भी नही जा स्कता है /
……………………………..
इस रोगी के एक तरह का नय चर्म रोग पैदा हो गया जिसे warty growth या मस्सा कहते है/ इस रोगी के गरदन के किनारे किनारे , गरदन के पीछे की ओर और दोनो axillary region मे बहुत बडी सन्ख्या मे मस्से हो गये है /
ऊपर के MICROSCOPIC VIEW मे कई लाख गुना बढाकर रिकार्ड किये गये चित्र मे देखने मे पता चला कि मरीज की सामान्य चर्म मे मेलाइन बहुत अधिक मात्रा मे ज्मा हो रही है जिससे उसके शरीर का काला रह्न्ग और अधिक गहरा होता जा रहा है /
जब मरीज को यह तकलीफ नही थी तब मरीज के चर्म का रन्ग गेहुआं सफेद था, लेकिन psoriasis की बीमारी के बाद और एलोपैथी का इलाज क्रने के बाद से मरीज का PSORIASIS कम होने के बजाय बढता चला गया और यह प्रक्रोया निरन्तर से निरन्तर लगातार जारी है /
MICROSCOPIC VIEWS मे देखने पर बहुत गहरायी लिये SKIN CRACKS पैदा हो गये है जिन्हे देखा जा सकता है /
This is not my case and I am not treating the patient in anyway , nor I have suggested any remedies for this patient.
The case was referred by a Doctor from Gujarat for ETG Ayurveda Scan and supplementary examination evaluation.
I have little information about the patient, when I asked before going to examination of ETG AyurvedaScan.
patient narrated me that in JANUARY 2014 , he suffered from black stool and was taking ALLOPATHIC remedies from renowned doctor but his black stool did not controlled.
He was advised for surgery and in FEBRUARY 2014 in middle of the month. He could not expressed to me for what he was operated and for what complaints. ??????????????
After Surgical intervention, slowly and gradually he developed JAUNDICE.
Jaundice was not relieved after ALLOPATHIC TREATMENT for over 45 days, then he contacted to one of Doctor from GUJARAT, who is treating him.
The doctor suggested for ETG AyurvedaScan examination.
Over 250 pages REPORT is give to patient with maximum details of his complaints and findings and disease progression and develipment.
See also the color of patient URINE.
Patient narrated that earlier to surgical intervention, he was somehow well in his health and have no problem except black stool.
ETG AyurvedaScan findings;
Although after surgical interventions, it is presumed that natural body parts are amputed out and a subway could be fabricated for functions.
LIVER and SMALL INTESTINES and LARGE INTESTINES and BLOOD pathophysiological and pathological anomalies sorted from High to lower level presence.
An ETG AyurvedaScan over 250 pages detail report is given viewing all aspects of patient problems.
FINALLY, I WILL SAY THAT PATIENT COMPLAINTS IS DUE TO SURGICAL INTERVENTIONS AND THUS CAN BE SAID MAN MADE DISEASE CONDITION.
My opinion may be wrong because I have not gone through the complete HISTORY of patient.
FISTULA यानी भगन्दर के बारे मे आम धारणा यही है कि यह बीमारी लाइलाज है और इसका कोई दवाओं से इलाज अथवा औशधीय इलाज नही है , सिवाय आपरेशन कराने के / इस तरह की धारणा आम जन और लोगो के बीच व्याप्त है /
लेकिन ऐसा सोचना गलत है / भगन्दर और FISTULA का इलाज आयुर्वेद और homoeoapthy और यूनानी तथा योग और प्राकृतिक चिकित्सा मे सम्भव है और यह बीमारी एक बार ठीक हो जाने के बाद फिर नही पैदा होती है /
आधुनिक चिकित्सा एलोपैथी मे FISTULA या भगन्दर का इलाज सिवाय आपरेशन कराने के दूसरा कोई उपाय नही है / आपरेशन कराने के बाद कई मरीज ठीक हो जाते है लेकिन बहुत से ऐसे मरीज इलाज के लिये आये जिनको एक बार आपरेशन क्राने के बाद उनको फिर दुबारा FISTULA पैदा हो गया / बहुत से ऐसे अपनी चिकित्सा कराने के लिये आये जो 9 दफा यानी NINE TIMES SURGERY करा चुके थे फिर भी उनका FISTULA नही ठीक हुआ /
आयुर्वेद मे औषधीय उपचार के साथ साथ क्षार सूत्र चिकित्सा का उपयोग करते है / लेकिन बहुत से ऐसे मरीज चिकित्सा कराने के लिये हमारे रिसर्च मेन्द्र मे आये जो देश के प्रतिष्टिथ क्षार चिकित्सा केन्द्रो मे जाकर क्षार सूत्र क्रा चुके थे और उसके बाद भी नही ठीक हुये /
ऐसे मरीजो का इलाज आयुर्वेद की नवीन आविष्कृत की गयी अत्याधुनिक तकनीक ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन और इसके supplementary tests पर आधारित इलाज करने से अव्श्य आराम मिला और मरीज ठीक हुये है /
चिकित्सा के लिये आये लगभग सभी मरीज ठीक हुये है और लाइलाज कही जाने वाली बीमारी FISTULA यानी भगन्दर का इलाज दवाओ के द्वारा सम्भव हो गया है /
Epilepsy या अपस्मार के रोगियों की बीमारी हो जाने की कोई उम्र की सीमा नही होती / यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है / इस बीमारी के होने की वजह या कारण बहुत से होते हैं जिन्हे किसी सीमा मे नही बान्धा जा सकता है / ज्यादा उम्र के लोगों को अगर यह तकलीफ है तो उन्हे आटो नर्वस सिस्टम या दिमाग या रीढ की हड्डी से सम्बन्धित बीमारियों की वजह से बेहोशी के दौरे पड़ सकते हैं / बीच की उमर वालों को भी कमी वेशी मानसिक तनाव, अत्यधिक मानसिक श्रम, शराब का अधिक उपयोग, नशे का आदी होना और नशा न मिलने के कारण प्रतिक्रिया स्वरूप दौरा पड़ जाना , दिमाग की पुरानी चोट, रीढ या गरदन की हड्डी के विकार आदि बहुत से कारण होते हैं /
उम्र के हिसाब से देखा गया है कि जिन छोटी आयु वाले बच्चों को यह बीमारी होती है , उनमे अधिकान्शत: कई तरह की गले य फेफडे से सम्बन्धित बीमारी पायी जाती है / कभी कभी गलत इलाज से भी बच्चो मे मिर्गी पैद हो जाती है / ऐसा तभी होता है जब बच्चो के तेज बुखर की अवस्था मे कोई बहुत heavy medications दिये जांय /
बड़ी उम्र के किशोरॊं में यह बीमारी उनको होती है जो या तो हस्त मैथुन करते हैं या जो अपने वीर्य को ब्रम्हचर्य द्वारा सुरक्षित नही रख पाते / यह उन किशोरों को भी होती है जिन्हे तम्बाकू खाने या कोई नशा करने की आदत पड़ जाती है / बहुत से किशोरों को कम्प्य़ूटर पर लम्बे समय तक काम करने अथवा अत्यधिक मानसिक श्रम के कारण यह दिक्कत आ जाती है / रक्त की कमी से भी दौरा पड़्ने की सम्भवना बनी रहती है / सोडियम या पोटेशियम का blood में imbalance होने से भी यह बीमारी हो जाती है /
अत्यधिक मानसिक परिश्रम करने से भी दौरा पड़ जाता है /
कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं , जिनके प्रभाव से या असर से मिर्गी का दौरा पड़ जाता है /
एक बार मिर्गी या हिस्टीरिया का दौरा पड़ जाने पर शरीर के अन्दर मिर्गी के दौरा पड़्ने का झुकाव या tendency बन जाती है / यह tendency जब एक बार स्थापित हो जाती है तो शरीर इसे बार बार repeat करता है / यही कारण है कि similar circumstances और similar intensities का जैसे ही तालमेल बनता है , वैसे ही मिर्गी का दौरा पड़ जाता है /
मिर्गी कोई लाइलाज बीमारी नही है / यह ठीक हो जाती है / लेकिन इलाज गम्भीरता से करने की जरूरत अवश्य होती है / मिर्गी का जैसे ही पहला दौरा पड़े , इसका इलाज शुरू कर देना चाहिये / इलाज करना अथवा कराना व्यक्ति और मरीज के परिजनों के ऊपर निर्भर करता है /
मिर्गी का कोई मुकम्मल इलाज आधुनिक चिकित्सा विग्यान मे नही है / हां, एलोपैथी की दवा खाने से दौरा रुक जाता है अथवा कम हो जाता है और कभी कभी ठीक भी हो जाता है / दवायें लगातार खानी पड़ती है और एक दिन दवा न खाने से मिर्गी का दौरा फिर से दुबारा पड़ जाता है / बहुत से रोगी ऐसे इलाज क्राकर ठीक हुये है जो पहले एलोपैथी की दवा खा रहे थे और उनको दौरे आते रहते थे यानी दवा खाने के बाद भी मिर्गी का दौरा पड़ता रहता था / लेकिन हमारे यहां इलाज कराने के बाद ऐसे सभी मरीज ठीक हो गये है / आयुर्वेद की आधुनिक जान्च इलेक्ट्रो त्रिदोष ग्राफी ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन आधारित डाटा द्वारा किये जाने वाले इलाज से मिर्गी रोग को जड़ मूल से ठीक किया जा सकता है /
मिर्गी की बीमारी के इलाज के लिये हमारे यहां का तौर तरीका निम्न प्रकार का है ;
१- हमारे यहां सभी तरह के परीक्षण मशीनो द्वारा अथवा मशीनो की सहायता और कम्प्यूटर द्वारा किये जाते है
२- सबसे पहले आयुर्वेद थरमल स्कैनिन्ग करते है
३- ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन आटोमेटिक मशीन द्वारा पूरे शरीर का परीक्षण करते है
४- आवश्यकता के अनुसार ई०टी०जी० ट्रेस रिकार्डिन्ग मनुअल मशीन द्वारा ट्रेस रिकार्ड किये जाते है
५- आयुर्वेद के रक्त परीक्षण किये जाते है
६- आयुर्वेद के मूत्र परीक्षण किये जाते है
७- आवश्यकता होने पर ई०टी०जी० आयुर्वेदस्कैन ट्रीड मशीन परीक्षण करते है
८- बार बार मिर्गी का दौरा पड़ने के कारणों की जान्च के लिये Continuous Brain Scanning / Autonomic Nervous system / Spinal scanning रोग निदान मे सहायता के लिये करते है
९- इसके अलावा अन्य दूसरे परीक्षण आवश्यकता के अनुसार किये जाते है जिनकी मरीज की आवश्यकता के अनुसार करते है
१०- रोग निदान मे जरूरत पड़ने पर अन्य उपलब्ध परीक्षण करते है
सभी परीक्षणो को करने मे और रिपोर्ट तैयार करने मे 8 से 12 घन्टे तक लग जाते है
परीक्षण पूरे हो जाने के बाद २०० से २७५ पेज [रिपोर्ट के पेजों का आकार मरीज के किये गये परीक्षणो पर आधारित होता है ] की रिपोर्ट कम्प्यूटर द्वारा छाप करके प्राप्त होती है /
रिपोर्ट फाइनल तैयार होने के बाद , मरीज की तकलीफ का Three Dimensional Diagnosis निकाली जाती है और यह establish किया जाता है कि [ पहला] मिर्गी का दौरा पैदा करने की वजह वाले कौन कौन से अन्ग है जो मिर्गी को पैदा करने के बीज या जड़ बुनियाद पैदा कर रहे है , दूसरा [२] यह जड़-बुनियाद किस रास्ते से होकर और किन किन अन्गो की विकृति के साथ होकर दिमाग तक या आटो नर्वस सिस्टम तक पहुन्च रही है और तीसरा [३] दिमाग या शरीर के कौन कौन से हिस्से मिर्गी की वजह से या कारण से कहां कहां प्रभावित हो रही है और उसकी intensity level किस स्तर की है / इसके अलावा थरमल स्कैन और रक्त परीक्षण और मूत्र परीक्षण तथा अन्य परीक्षणो का सहारा निदानात्म्क दृष्टिकोण के मद्दे नज्रर लिया जाता है /
मिर्गी की जड़ बुनियाद का पता चलने पर आयुर्वेदिक / होम्योपैथिक / यूनानी दवाये लिख कर सेवन करने के लिये मरीज को दे दी जाती है / द्वाये मरीज को बाज़ार से लेकर सेवन करना होता है /
हमारे यहां से मरीज को कोई भी दवा नही दी जाती है, मरीज को पर्चे मे लिखी दवाये बाज़ार से market से लेकर खाना होता है /
आयुष की अन्य चिकित्सा विधियों यथा होम्योपैथी चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा आदि में मिर्गी का इलाज करने की क्षमता है / यह मिर्गी के रोगी के ऊपर निर्भर है या उसके परिजनों पर कि वे कौन सी चिकित्सा विधि से इलाज कराना चाहते हैं /
हमने अनुभव किया है कि ETG AyurvedaScan परीक्शण करा कर जिन मिर्गी के रोगियों का इलाज आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा और साथ में बताये गये “परहेज” और जीवन शैली मे बदलाव के साथ किया गया है, ऐसे मिर्गी के रोगियों को आरोग्य अवश्य मिला है /
ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन और आयुर्वेद की अन्य आविष्कृत की गयी आधुनिक वैग्यानिक तकनीको के प्रीक्षण रिजल्ट पर आधारित इलाज करने से मिर्गी और हिस्टीरिया अवश्य ठीक होते है और आयुर्वेदिक इलाज करने से हमारे केन्द्र द्वारा १००% प्रतिशत मरीज ठीक हुये है और वत्रमान मे मिर्गी के रोगियो का इलाज चल रहा वे भी ठीक हो रहे है और नये आने वाले मरीज भी ठीक हो रहे है और यह उम्मीद करते है कि भविष्य मे जितने भी मिर्गी के रोगी आयेन्गे वे भी अवश्य ठीक होन्गे /
ऐसा देखने मे आया है कि आजकल के समय मे देश और विदेश की आम जनता को यह तक नही पता है कि अगर उनको कोई रोग हो जाये तो उनको क्या करना चाहिये ? किस तरह का इलाज करना चाहिये ? जो उनकी बीमारी दूर करने मे सहाय्क तो हो ही , उनके शरीर को किसी तरह का side effects जैसा नुकसान भी न हो ?
आज से तीस पैतिस साल पहले तक चिकित्सा क्षेत्र मे BRITISH IDEOLOGY का बोलबाला था / चिकित्सा विग्यान मे औषधियों के क्षेत्र में और चिकित्सा शिक्षा मे BRITISH PATTERN की पुस्तकों का अध्य्यन चिकित्सा विग्यान की सभी धारा के छात्र / छात्राये किया करते थे / उस समय ५० के दशक की दवाये मिला करती थी और मारकेट मे उपलब्ध होती थी / यह दवाये ऐसी होती थी जिनके खाने से न तो कोई साइड प्रभाव होता था और न मरीज को कोई दिक्कत होती थी /
इसका कारण यह था कि BRITISH PATTERN की प्रभाव MISSIONARY के तौर तरीके का था, जहां सेवा भावना पहले होती थी और बाकी सब बाद में /
लेकिन आज से ३५ साल के अन्दर ही जब से अमरीकन प्रभाव का चिकित्सा के क्षेत्र मे प्रवेश हुआ है , तब से सब कुछ और सोच विचार “राक्षसी विचार धारा” का हो गया है / सारी सोच बदल गयी और मनुष्य को मनुष्य नही “मशीन” की तरह से समझा जाने लगा है / क्योंकि जब मनुष्य को मशीन समझा जायेगा तो इलाज भी मशीन के पुर्जे की ही तरह से किया जायेगा /
सफेद दाग LEUCODERMA ;अब लाइलाज बीमारी नही है ; आयुर्वेद चिकित्सा से शत प्रतिशत ठीक होता है
LEUCODERMA यानी सफेद दाग अब लाइलाज बीमारी की श्रेणी मे नही है / आयुर्वेद की आधुनिक तकनीक ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन के परीक्षण और इस परीक्षण के निष्कर्ष के आधार पर आयुर्वेद की चिकित्सा करने से WHITE SPOTS / LEUCODERMA / VITILIGO / सफेद दाग अवश्य ठीक होते है /
आयुर्वेद के दूसरे अन्य आविष्कृत किये गये परीक्षणो से यथा आयुर्वेद थर्मल स्कैनिन्ग, आयुर्वेद रक्त परीक्षण और आयुर्वेद मूत्र परीक्षण से प्राप्त आन्कड़ो और रोग निदान के निष्कर्ष आधारित इलाज से त्वचा सम्बन्धी सभी बीमारियो का इलाज सफलता पूर्वक किया जा सकता है /
हमारे अनुसन्धान केन्द्र ; कनक पाली-थेरापी क्लीनिक एवम अनुसन्धान केन्द्र , कानपुर , उत्तर प्रदेश , भारत मे सफेद दाग LEUCODERMA / WHITE SPOTS / VITILIGO के रोगियो का इलाज सफलता पूर्वक किया जा चुका है और इलाज मे सफलता का प्रतिशत ; १०० % शत – प्रतिशत रहा है /
हमारा इलाज करने का तौर तरीका निम्न प्रकार का है ;
१- सभी तरह के परीक्षण मशीनो द्वारा अथवा मशीनो की सहायता द्वारा किये जाते है
२- सबसे पहले आयुर्वेद थरमल स्कैनिन्ग करते है और इसके साथ साथ ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन का परीक्षण करते है
३- आवश्यकता के अनुसार मशीन द्वारा मैनुअल ट्रेस रिकार्ड किये जाते है
४- आयुर्वेद के रक्त परीक्षण किये जाते है
५- आयुर्वेद के मूत्र परीक्षण किये जाते है
६- त्वचा का जहां सफेद दाग होते है वहां का microscopic परीक्षण करते है
७- त्वचा का color deflection जान्चा जाता है
८- इसके अलावा अन्य दूसरे परीक्षण आवश्यकता के अनुसार किये जाते है
इन सभी परीक्षणो को करने मे और रिपोर्ट तैयार करने मे 8 से 12 घन्टे तक लग जाते है
परीक्षण पूरे हो जाने के बाद और रिपोर्ट फाइनल तैयार होने के बाद , मरीज की तकलीफ का Three Dimensional Diagnosis निकाली जाती है और यह establish किया जाता है कि [ पहला] LEUCODERMA / WHITE SPOT / VITILIGO / सफेद दाग को पैदा करने के बीज या जड़ बुनियाद कहां से पैदा हो रही है , दूसरा [२] यह जड़-बुनियाद किस रास्ते से होकर और किन किन अन्गो की विकृति के साथ होकर त्वचा तक पहुन्च रही है और तीसरा [३] शरीर के हिस्से की त्वचा कहां कहां प्रभावित हो रही है और उसकी intensity level किस स्तर की है / इसके अलावा थरमल स्कैन और रक्त परीक्षण और मूत्र परीक्षण तथा अन्य परीक्षणो का सहारा निदानात्म्क दृष्टिकोण के मद्दे नज्रर लिया जाता है /
क्या इलाज करना है, कहा शरीर मे गड़बड़ी है और किस तरह का उप्चार तथा खाना पीना और जीवन चर्या किस तरह की मरीज की होना चाहिये , यह सब एक विसतृत फाइल मे आदेशित किया जाता है /
मरीज के लिये उपयुक्त दवा क्या होना चाहिये , इसके लिये दवाओं का चुनाव आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक या यूनानी सिस्टम से एकल अथवा बहुल तरीके से मरीज की आवश्यकता के अनुसार चुनाव करके PRESCRIPTION लिख दिया जाता है / यह दवाये मरीज को अपने शहर के दुकानो से खरीद कर सेवन करना होता है / सभी दवाये भारत के सभी शहरो और कस्बो मे उपलब्ध होती है /
हमारे यहा से मरीज को कोई भी किसी किस्म की दवा नही दी जाती है / मरीज को दवा लिखकर दे दी जाती है जिसे वह अपनी सुविधा के अनुसार कही से भी किसी भी दूकान से खरीद कर सेवन करता है /
हम केवक ONLY परीक्षण करके दवा का पर्चा देते हैं /
हमारे केन्द्र मे आकर इलाज कराने वाले सभी LEUCODERMA या सफेद दाग के रोगी ठीक हो गये है , जिनका इलाज चल रहा है , उनको भी दिन प्रतिदिन आराम मिल रही है और यह उम्मीद करते है और विश्वास करते है कि आगे भविष्य मे आने वाले सभी leucoderma के रोगी अवश्य ठीक होन्गे और इस तरह की लाइलाज बतायी गयी और कही गयी बीमारी से अवश्य मुक्त होन्गे /
LEUCODERMA / WHITE SPOTS are now not an incurable disease condition according to the AYURVEDA based newly invented technology E.T.G. AYURVEDASCAN and its supplementary tests results.
Ayurvedic treatment have been given a large number of LEUCODERMA patients at KANAK POLYTHERAPY CLINIC AND RESEARCH CENTER, KANPUR, UTTAR PRADESH , INDIA .
CURE Results are obtained 100%, which is an astonishing facts for ETG AyurvedaScan Chief Investigator Dr D.B.Bajpai, who is engaging in this task.
रोजाना बहुत बड़ी सन्खया मे देश और विदेश से आयुर्वेद प्रेमी और जिग्यासु जनता “ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन ” परीक्शण के बारे मे जानना चाहती है / बहुत से लोग इस बात को ग्यात करना चाहते है कि ई०टी०जी० परिक्षण के साथ अन्य कौन कौन से परीक्षण किये जाते है /
नीचे दिये गये वीडियो मे ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन रिपोर्ट और इसके supplementary tests और examination के बारे मे बताया गया है ताकि सभी लोग यह समझ ले कि आयुर्वेद की यह तकनीक किस प्रकार से आयुर्वेदिक रोग निदान आयुर्वेदिक और रोग चिकित्सा मे किस तरह से उपयोगी साबित हो चुकी है /
10th April , the birth day of the founder and Father of Homoeopathy is celebrated as HOMOEOPATHY DAY by the admirer and followers of the Homoeopathic medical system.
In our research center, we have done already few research work for AYURVEDA, duly accredited by the Government of India.
We have also done the development of the instrumentation and chemical tests for evaluation and perfectness of the Ayurveda and Homoeopathy both in view of the SCIENTIFIC EVIDENCE BASED MEDICAL SYSTEM.
Both the system AYURVEDA and H omoeopathy is now evidence based medical system in view of instrumentations and chemical laboratory testings.
ELECTRO HOMOEO GRAPHY ; E.H.G. HomoeopathyScan
This is one of the DIGITAL HEAMOMETER, which is being used for WHOLE BLOOD examination in view of AYURVEDIC and HOMOEOPATHIC principles. Impregnated alchemical paper bits are used for TEST purposes. The machine reads the intensity level and shows in number.
WE are using some other developed HEAMOMETER in our research center for status quantification of HOMOEOPATHIC PRINCIPALS AND DIAGNOSIS OF BLOOD CONTENTS.
We use the readings for AYURVEDA and HOMOEOPATHIC purposes and used data for AYURVEDIC and HOMOEOPATHIC Diagnosis.
Whole Blood Test with the HEAMOMETER gives the following parameters of Homoeopathic HAHANEMANNIAN fundamentals ;
1- PSORA
2- SYCOSIS
3- SYPHILIS
4- VITAL FORCE
5- IDEOSYNCRACY
6- SENSITIVENESS
Homoeopathy Blood Test Report for status quantification of Hahnemannian Homoeopathic Principals
These Data are for the ONLY USE OF AYURVEDICIANS AND HOMOEOPATHS and have no relation in any manner to other systems of diagnosis.
We warn that the data of Ayurveda and Homoeopathy should not be compared to other medical system’s findings because diagnosis and treatment approach of each system differs in Single unite and multiunite philosophy of their practicing systems.
Main objectives of the information for the test and mechanical diagnosis is to proove that HOMOEOPATHY now should be considered as an evidence based medical system, where principles can be quantified now at present.
A BOY AGED 14 yrs suffered from BRAIN ANOMALIES undiagnosed earlier and was treated by physician as a case of TUBERCULOSIS without any results, except deterioration of his health condition worst to worsen.